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घायल तो यहाँ हर परिंदा है, मगर जो फिर से उड़ सका वही ज़िंदा है।

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“घायल तो यहाँ हर परिंदा है, मगर जो फिर से उड़ सका वही ज़िंदा है।”

हर इंसान जीवन में कभी न कभी चोट खाता है—कभी रिश्तों में, कभी सपनों में, तो कभी हालातों में। ज़िंदगी हर किसी को गिराती है, लेकिन फर्क वहाँ से शुरू होता है, जहाँ कुछ लोग गिरकर टूट जाते हैं, और कुछ गिरकर फिर से उड़ने की हिम्मत करते हैं।

ज़ख्म हर किसी को मिलते हैं

चाहे वह एक छात्र हो जो परीक्षा में असफल हुआ हो, एक उद्यमी जिसका बिज़नेस डूब गया हो, या कोई ऐसा इंसान जिसे अपनों ने छोड़ दिया हो—हर किसी की ज़िंदगी में घाव हैं।
लेकिन सवाल यह नहीं है कि आप कितनी बार गिरे। सवाल यह है कि क्या आप हर बार उठे?

उड़ने की हिम्मत ही असली ज़िंदगी है

परिंदे जब घायल होते हैं, तो कुछ मर जाते हैं। लेकिन कुछ परिंदे ऐसे होते हैं जो अपने टूटे हुए पंखों को सहलाते हैं, वक्त लेते हैं, और फिर से उड़ने का साहस करते हैं।
यही परिंदे असल में ज़िंदा हैं।
वे हार नहीं मानते, वे कहते हैं:

“अब चाहे जितनी भी चोटें आई हों,
मैं फिर से उड़ूँगा, क्योंकि मैं ज़िंदा हूँ।”

संघर्ष ही पहचान बनाता है

जो इंसान सबसे बड़ी ठोकरें खाता है, वही सबसे मजबूत बनता है।
    •    डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम बचपन में अखबार बेचते थे, लेकिन सपना देखा और देश के राष्ट्रपति बने।
    •    नरेंद्र मोदी एक साधारण परिवार से थे, लेकिन अपने संकल्प से देश का नेतृत्व कर रहे हैं।
    •    महात्मा गांधी को कई बार अपमानित किया गया, पर उन्होंने दुनिया को बदल दिया।

निष्कर्ष: ज़ख्मों को अपनी उड़ान का आधार बनाइए

आपका अतीत चाहे जितना भी दर्दनाक हो, उसका मतलब यह नहीं कि आपका भविष्य भी वैसा ही होगा।
हर घाव के साथ कुछ सीखिए, और फिर से उड़िए—नई उम्मीदों के साथ, नई दिशा में।

क्योंकि ज़िंदगी उन लोगों की होती है जो दोबारा उड़ने की हिम्मत रखते हैं।



क्या आपने भी कभी टूटकर खुद को फिर से संभाला है? नीचे कमेंट में ज़रूर शेयर करें—आपकी कहानी किसी के लिए प्रेरणा बन सकती है।