दर्द, गम, डर जो भी है बस तेरे अंदर है, ख़ुद के बनाये पिंजरे से निकलकर देख तू भी एक सिकंदर है
“दर्द, गम, डर जो भी है बस तेरे अंदर है,
ख़ुद के बनाये पिंजरे से निकलकर देख
तू भी एक सिकंदर है।”
कभी आपने सोचा है कि हमें सबसे ज्यादा कौन रोकता है? हालात? लोग? किस्मत?
नहीं… सबसे बड़ा रोड़ा हम खुद होते हैं।
हम अपने डर, असफलता की यादों, और समाज की सोच के चलते खुद के चारों ओर एक पिंजरा बना लेते हैं।
इस पिंजरे में हम अपनी उड़ान भूल जाते हैं, अपने सपनों से समझौता कर लेते हैं, और सोचते हैं कि शायद हम इससे ज्यादा के लायक नहीं।
दर्द और डर: असली दुश्मन नहीं, भ्रम हैं
हर इंसान के जीवन में दर्द और डर आते हैं। लेकिन ये बाहर से नहीं आते—ये हमारे अंदर पनपते हैं, हमारी सोच से, हमारे अनुभवों से।
• जो कल किसी ने कहा, वो आज भी हमें रोकता है।
• जो कभी नहीं कर पाए, वो बार-बार हमारे आत्मविश्वास को चोट पहुंचाता है।
लेकिन क्या आपने कभी महसूस किया है कि ये सारे डर सिर्फ कल्पना के पिंजरे हैं? और इस पिंजरे की चाबी आपके ही हाथ में है?
जब इंसान अपने ही बनाए बंधनों को तोड़ता है
इतिहास गवाह है—जो लोग अपने भीतर के डर को मात देते हैं, वही दुनिया को जीतते हैं।
• भगत सिंह ने मौत से नहीं, अपनी सोच से लड़ाई लड़ी।
• हेलन केलर ने अपनी सीमाओं को तोड़ा और एक मिसाल बन गईं।
• स्वामी विवेकानंद ने कहा, “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”
तू भी एक सिकंदर है
सिकंदर बनने के लिए तलवार नहीं, आत्मविश्वास चाहिए।
तू डर से नहीं, अपने जुनून से पहचान बना।
खुद को कम मत समझ, क्योंकि जिस दिन तू अपने अंदर झांककर देखेगा, उसी दिन तुझमें छिपा सिकंदर जाग जाएगा।
निष्कर्ष: खुद को आज़ाद कर, ऊँचाइयों को छू
अब और नहीं रुकना है।
अब अपने बनाए पिंजरे से निकलकर, उस खुली उड़ान की तरफ जाना है, जहाँ तू अपने सपनों को हकीकत बना सके।
याद रख — दर्द, गम, डर सब अंदर हैं,
लेकिन तू उससे बड़ा है… क्योंकि तू भी एक सिकंदर है।
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क्या आप भी किसी डर या दर्द से बाहर निकलकर आगे बढ़े हैं? अपनी कहानी नीचे शेयर करें, ताकि दूसरों को भी उड़ने की हिम्मत मिले।
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